ओम गणेशाय नमः !
ओम नमः शिवाय !
विषय : पुराणों, महाभारत एवं रामायण के ज्ञान की दैनिक जीवन में उपयोगिता ,
मनुष्य जीवन की खुशियाँ ही पुराणों, उपनिषदों, महाभारत, मनु स्मृति एवं रामायण आदि का एक मात्र लक्ष्य
उपनिषदों, पुराणों, मनु स्मृति, महाभारत एवं रामायण के रचयिता सुप्रसिद्ध ऋषि मुनि अपने व्यक्तिगत हित या किसी विशेष वर्ग या संप्रदाय या विशेष वर्ण या जाति के हित में नहीं सोचते थे . उनका चिंतन इतना विशाल था कि वो लोग संपूर्ण संसार के संपूर्ण प्राणियों के हित में ही नहीं सोचते थे बल्कि जो प्राणी इस संसार को त्याग कर चले गए हैं, उन मृत आत्माओं के बारे में भी उनका चिंतन रहता था. जो प्राणी अन्य लोक या ग्लोब पर रहते हैं उनके बारे में भी उनका चिंतन होता था . संकीर्णता या निजी व्यक्तिगत स्वार्थ अज्ञान का प्रतीक माना गया है .
जीवन में खुशियाँ प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी मनुष्य को चाहिए केवल उन्हीं बातों का चिंतन पौराणिक ऋषि मुनि करते थे .
प्रायः पुराणों की प्रस्तावना इस प्रकार प्रारंभ होती है कि देव ऋषि नारद जी ने संपूर्ण विश्व का भ्रमण किया और देखा कि सभी लोग दुखी हैं, संसार से खुशियाँ गायब हो गयी हैं . स्त्रियाँ और पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी बहुत ही अधिक दुखी हैं . धनी और निर्धन, कमजोर और शक्तिशाली , राजा और रंक, आम आदमी और विशेष आदमी, स्वस्थ और रोगी सभी किसी न किसी कारण से दुखी अवश्य हैं . इस प्रकार का समाचार देव ऋषि नारद जी भगवान विष्णु जी या ब्रह्मा जी या शिव जी को सुनाते हैं और यह दुखद समाचार सुनाते हुए स्वयम भी बहुत ही अधिक दुखी हो जाते हैं और सभी लोगों के सदा के लिए दुख से मुक्त होने का अचूक उपाय पूछते हैं और कहते हैं कि कोई ऐसा उपाय बताओ कि सभी के जीवन में सदा के लिए खुशियाँ आ जाएं .
बस इसी प्रश्न के उत्तर में सभी 18 पुराणों की कथाओं का प्रारंभ होता है .
बचपन में , गाँव में स्कंद पुराण के रीवा खण्ड से सत्य नारायण स्वामी की कथा सुनता था, उस कथा का प्रारंभ भी बिल्कुल इसी प्रकार से होता है . सभी प्रकार की खुशियाँ प्राप्त करने के लिए और दुखों का अंत करने के लिए विष्णु भगवान जी ने या ब्रह्मा जी ने देव ऋषि नारद जी को बताया कि लोगों को अपने जीवन में सत्य का आचरण करना चाहिए क्योंकि सत्य ही नारायण हैं, सत्य ही शिव जी हैं, सत्य ही माँ जगदम्बा दुर्गा माता हैं, सत्य ही सुंदर है और सत्य ही सुखद है . बस इसी बात को सरल भाषा में समझाने के लिए सत्य नारायण स्वामी की कथा सुनाई गयी किंतु जब पंडित जी कथा सुनाते थे तब सभी लोगों का ध्यान कथा सुनने में कम होता, बाद में मिलने वाले प्रसाद पर अधिक होता और बच्चे तो एक दूसरे को परेशान ज्यादा करते थे, कथा में भी मनोरंजन करते थे, पूर्ण मनोयोग से कथा नहीं सुनते थे .
संपूर्ण पुराण जीवन में सत्य, सत्यनिष्ठा, वचन बद्धता, संयम, अनुशासन, Loyalty and commitment in relationship, दया, क्षमा, अहिंसा, आपसी भाईचारा, सामाजिक समरसता और प्रेम की अच्छी बातें करते हैं किंतु अच्छी बातें लोगों को जहर की तरह कड़वी लगती हैं, इसलिए लोग पूर्व काल से लेकर आज भी दुखी हैं और हमेशा ही दुखी ही रहेंगे क्योंकि अच्छी बातें न तो शिक्षा का अंग हैं, न सोशल मीडिया का, न TV प्रोग्राम का, न ही साहित्य का .
जिन पुराणों में, महाभारत और रामायण मे अच्छी बातें बताई गई हैं उनको शिक्षा व्यवस्था से दूर कर दिया जैसे आधुनिक व्यक्ति अपने माँ बाप को घर से निकाल देते हैं .
इस दुखद परिस्थिति को कोई कंट्रोल नहीं कर सकता है, बस इसको धैर्य के साथ सहन करना ही एक मात्र रास्ता है क्योंकि यहाँ कोई भी व्यक्ति किसी भी बात सुनता नहीं है . सभी अपनी मर्जी के मालिक हैं, स्वतंत्र हैं.
स्रोत: श्याम वीर सिंह, फेस बुक २४.०१.२०२२